History of Rajasthan Art, Culture, Literature, Tradition & Heritage Indian Culture

By | 20th February 2016




History of Rajasthan Art, Culture, Literature, Tradition & Heritage Indian Culture

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History of Rajasthan Art, Culture, Literature for RPSC Teacher, Patwari Exams

  • कामधेनु योजना वर्ष 1997-98 में प्रांरभ की गई।
  • मत्स्य संघ का गठन————17 मार्च, 1948)
  • पूर्व राजस्थान का गठन————-25 मार्च, 1948)
  • संयुक्त राजस्थान का गठन————18 अप्रेल, 1948)
  • वृहत राजस्थान का गठन——————–30 मार्च, 1949)
  • संयुक्त वृहत राजस्थान का गठन———–15 मई, 1949)
  • राजस्थान संघ का गठन———-26 जनवरी, 1950)
  • राजस्थान का पुनर्गठन————–1 नवंबर, 1956)

Major Literary Work Related to the History of Rajasthan

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राजस्थान के इतिहास से संबंधित प्रमुख साहित्यिक कृतियां

हमीर महाकाव्य: नयनचंद्र सूरी द्वारा रचित इस महाकाव्य में रणथंभौर के चैहान शासकों विशेषकर राव हमीर देव चैहान की वीरता एवं उसका अलाउद्धीन खिलजी के साथ हुए युद्ध का वर्णन है।

राजवल्लभ: महाराणा कुंभा के शिल्पी मंडन द्वारा रचित इस ग्रंथ में तात्कालिन समय की वास्तुकला व शिल्पकला का पता चलता है।

एकलिंग महात्म्य: मेवाड़ के सिसोदिया वंश की वंशावलि बताने वाले इस ग्रंथ का रचयिता मेवाड़ महाराणा कुंभा का दरबारी ‘कान्हा व्यास’ माना जाता है।

पृथ्वीराज विजय: 12 वीं सदी में जयानक द्वारा रचित इस ऐतिहासिक ग्रंथ में प्रमुख रूप से अजमेर के शासक पृथ्वीराज चौहान तृतीय के गुणों व पराक्रम का वर्णन है।

सुर्जन चरित्र: कवि चंद्रशेखर द्वारा रचित इस ग्रंथ मं बूदी रियासत के शासक राव सुर्जन हाड़ा के चरित्र का वर्णन किया गया है।

भट्टि काव्य: भट्टिकाव्य नामक इस ग्रंथ में 15वीं सदी के जैसलमेर राजा के सामाजिक व राजनीतिक जीवन का वर्णन है।

राजविनोद: भट्ट सदाशिव द्वारा बीकानेर के राव कल्याणमल के समय रचित इस ग्रंथ में 16वीं शताब्दी के बीकानेर राज्य के सामाजिक, राजनीति व आर्थिक जीवन का वर्णन मिलता है।

कर्मचंद वंशोत्कीतर्न काव्यम: जयसोम द्वारा रचित इस ग्रंथ में बीकानेर रियासत के शासकों का वर्णन है।

अमरकाव्य वंशावली: रणछोड़दास भट्ट द्वारा रचित इस ग्रंथ में मेवाड़ सिसोदिया शासकों की उपलब्धियों का वर्णन मिलता है।

कान्हड़दे प्रबंध: इस ग्रंथ के रचयिता जालौर रियासत के शासक अखैराज सोनगरा के दरबारी कवि पदमनाभ है। इसमें जालौर के वीर सोनगरा चैहान शासक कान्हड़देवे व अलाउद्धीन खिलती के मध्य हुए युद्ध का वर्णन है।

हम्मीरायण: कवि पद्मनाभ द्वारा रचित इस ग्रंथ में जालोर रियासत के शासकों का वर्णन किया गया है।

पृथ्वीराज रासौ: पिंगल में रचित इस महाकाव्य के रचयिता चंदबरदाई है। इसमें अजमेर के अंतिम चैहान शासक पृथ्वीराज तृतीय के जीवन चरित्र एवं युद्धों का वर्णन है। यह शौर्य-श्रृंगार, युद्ध प्रेम व जय-विजय का अनूठा चरित्र काव्य है।

खुमाण रासौ: दलपति विजय द्वारा रचित पिंगल भाषा के इस ग्रंथ में मेवाड़ के बप्पा रावल से लेकर महाराणा राजसिंह तक के मेवाड़ शासकों का वर्णन है।

विरूद छतहरी व किरतार बावनी: अकबर के दरबारी कवि दुरसा आढा द्वारा रचित विरूद छतहरी में महाराणा प्रताप की शौर्य गाथा है।

बीकानेर रा राठौड़ा री ख्यात (दयालदास री ख्यात): बीकानेर रियासत के शासक रतनसिंह के दरबारी कवित दयालदास द्वारा रचित दो खंडों के इस ग्रंथ में जोधपुर व बीकानेर के राठौड़ शासकों के प्रारंभ से लेकर बीकानेर महाराजा सरदारसिंह तक की घटनाओं का वर्णन है।

सगत रासौ: गिरधर आसिया द्वारा रचित इस डिंगल ग्रंथ में महाराणा प्रताप के छोटे भाई शक्तिसिंह का वर्णन है। यह डिंगल भाषा में लिखा गया प्रमुख रासौ ग्रंथ है।

हमीर रासौ: जोधराज द्वारा रचित इस ग्रंथ में रणथंभौर के चैहान शासक राव हमीरदेव चैहान की वंशावली, अलाउद्धीन खिलती से हुए युद्ध व हमीर की वीरता का विस्तृत विवरण दिया गया है।

बांकीदास री ख्यात: जोधपुर महाराज मानसिंह के काव्य गुरू बांकीदास द्वारा रचित यह ख्यात राजस्थान का इतिहास जानने का प्रमुख स्रोत है। इनकी एक अन्य रचना बांकीदास की बांता मंे राजपूत वंशों से संबंधित लगभग 2000 लघु कथाओं का संग्रह है।

वीर विनोद: मेवाड़ महाराणा सज्जनसिंह (शंभूसिंह) के दरबारी कविराज श्यामलदास ने अपने इस विशाल ऐतिहासिक ग्रंथ की रचना महाराणा सज्जनसिंह के आदेश पर प्रारंभ की। चार खंडों में रचित इस ग्रंथ पर कविराज श्यामलदास का ब्रिटिश सरकार द्वारा केसर-ए-हिंद की उपाधि प्रदान की गई। इस ग्रंथ में मेवाड़ के विस्तृत इतिहास सहित अन्य संबंधित रियासतों का भी वर्णन है। मेवाड़ महाराणा सज्जनसिंह ने श्यामलदास को कविराज व महामहोपाध्याय की उपाधि से विभूषित किया था।

बातां री फुलवारी: आधुनिक काल के प्रसिद्ध राजस्थानी कथा साहित्यकार विजयदान देथा द्वारा रचित इस रचना में राजस्थानी लोक कलाओं का संग्रह किया गया।

मुहणौत नैणसी री ख्यात: राजस्थान के अबुल फजल के नाम से प्रसिद्ध एवं जोधपुर महाराज जसवंतसिंह प्रथम के प्रसिद्ध दरबारी (दीवान) मुहणौत नैणसी द्वारा रचित इस ग्रंथ मंे राजस्थान के विभिन्न राज्यों के इतिहास (विशेषतः मारवाड़) एवं 17 वीं शताब्दी के राजपूत मुगल संबंधों पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। इसे जोधपुर का गजेटियर कहा जाता है।

मारवाड़ रा परगना री विगत: मुहणौत नैणसी द्वारा रचित इस ग्रंथ में मारवाड़ रियासत के इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। मारवाड़ रा परगना री विगत को राजस्थान का गजेटियर कहा जाता है।

पदमावत महाकाव्य: मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा सन 1540 ई के लगभग रचित इस महाकाव्य में अलाउद्धीन खिलजी एवं मेवाड़ शासक रावल रतनसिंह के मध्य 1301 ई में हुए युद्ध का वर्णन है।

ढोला मारू रा दूहा: कवि कल्लोल द्वारा रचित डिंगल भाषा के श्रृंगार रस से परिपूर्ण इस ग्रंथ में गागरोन के शासक ढोला व मारवण के प्रेम प्रसंग का वर्णन है।

सूरस प्रकास: जोधपुर महाराजा अभयसिंह के दरबारी कवि करणीदान कविया द्वारा रचित इस ग्रंथ में जोधपुर के राठौड़ वंश के प्रारंभ से लेकर महाराजा अभयसिंह के समय तक की घटनाओं का वर्णन है।

विजयपाल रासौ: विजयगढ (करौली) के यदुवंशी नरेश विजयपाल के आश्रित कवि नल्लसिंह भट्ट द्वारा रचित पिंगल भाषा के इस वीर रसात्मक ग्रंथ में विजयगढ (करौली) के शासक विजयपाल यादव की दिग्विजयों का वर्णन है।

नागर समुच्चय: यह ग्रंथ किशनगढ के शासक सांवतसिंह उर्फ नागरीदास की विभिन्न राधा-कृष्ण प्रेम विषयक रचनाओं का संग्रह है।

वेलि क्रिसन रूकमणी री: मुगल सम्राट अकबर के दरबारी नवरत्नों में से एक एवं बीकानेर महाराजा रायसिंह के छोटे भाई पृथ्वीराज राठौड़ द्वारा रचित डिंगल भाषा के इस सुप्रसिद्ध ग्रंथ में श्रीकृष्ण एवं रूकमणि के विवाह की कथा का वर्णन किया गया है। दुरसा आढा ने इस ग्रंथ को 5वां वेद एवं 19वां पुराण कहा है। यह राजस्थान में श्रृंगार रस की सर्वश्रेष्ठ रचना है। पीथल के नाम से साहित्य रचना करने वाले पृथ्वीराज राठौड़ को डाॅ. टेस्सिटोरी ने डिंगल का हैरोस कहा है।

बिहारी सतसई: जयपुर महाराज मिर्जा राजा जयसिंह के प्रसिद्ध दरबारी महाकवि बिहारीदास द्वारा ब्रजभाषा में रचित यह प्रसिद्ध ग्रंथ श्रृंगार रस की उत्कृष्ट रचना है।

ढोला मारवणी री चैपाई (चड़पही): इस ग्रंथ की रचना कवि हरराज द्वारा जैसलमेर के यादवी वंशी शासकों के मनोरंजन के लिए की गई।

कुवलयमाला: 8वीं शताब्दी के इस प्राकृत ग्रंथ की रचना उद्योतन सूरी ने की थी।

ब्रजनिधि ग्रंथावलि: जयपुर महाराजा प्रतापसिंह कच्छवाह द्वारा रचित काव्य ग्रंथों का संकलन। ये ब्रजनिधि के नाम से संगीत काव्य रचना करते थे।

हमीर हठ: बूंदी के हाड़ा शासक राव सुर्जन के आश्रित कवि चंद्रशेखर द्वारा रचित है।

राजपूताने का इतिहास व प्राचीन लिपिमाला: इनके रचयिता राजस्थान के प्रसिद्ध इतिहासकार पंडित गौरीशंकर हीराशंकर ओझा है। जिन्होने हिंदी में सर्वप्रथम भारतीय लिपि का शास्त्र लेखन कर अपना नाम गिनिज बुक में दर्ज करवाया। इन्होने राजस्थान के देशी राज्यों का इतिहास भी लिखा। इनका जन्म सिरोही जिले के रोहिड़ा नामक कस्बे में हुआ।

सिरोही राज्य का इतिहास: पं. गौरीशंकर हीराचंद ओझा द्वारा रचित

तारीख-उल-हिंद: अलबरूनी द्वारा लिखित इस ग्रंथ से 1000 ई.के आसपास की राजस्थान की सामाजिक व आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है।

तारीख-ए-अलाई (ख्जाइन उल फुतूह): अमीर खुसरों द्वारा रचित इस ग्रंथ में अलाउद्धीन खिलजी एवं मेवाड़ के राणा रतनसिंह के मध्य सन 1303 में हुए युद्ध व रानी पद्मिनी के जौहर का वर्णन मिलता है।

तारीख-ए-फिरोजशाही: जियाउद्धीन बरनी द्वारा लिखित इस ग्रंथ से रणथंभौर पर हुए मुस्लिम आक्रमणों की जानकारी मिलती है।

तारीख-ए-शेरशाही: अब्बास खां सरवानी द्वारा लिखित इस ग्रंथ में शेरशाह सूरी एवं मारवाड़ के शासक राव मालदेव के मध्य सन 1544 ई में हुए गिरी सुमेल के युद्ध का वर्णन किया गया है। सरवानी इस युद्ध का प्रत्यक्षदर्शी था।

राठौड़ रतनसिंह महेस दासोत री वचनिका: जग्गा खिडि़या द्वारा रचित डिंगल भाषा के इस ग्रंथ से जोधपुर शासक जसवंतसिंह के नेतृत्व में मुगल सेना एवं मुगल सम्राट शाहजहां के विद्रेाही पुत्र औरंगजेव व मुराद की संयुक्त सेना के बीच हुए धरमत (उज्जैन) के युद्ध में राठौड़ रतनसिंह के वीरतापुर्ण युद्ध एवं बलिदान का वर्णन है।

अचलदास खींची री वचनिका: चारण कवि शिवदास गाडण द्वारा रचित इस डिंगल ग्रंथ से मांडू के सुल्तान हौशंगशाह व गागरौन के शासन अचलदास खींची के मध्य हुए युद्ध (1423ई.) तथा गागरोन के खींची शासको के बारे में संक्षिप्त जानकारी मिलती है।

बीसलदेव रासो: नरपति नाल्ह द्वारा रचित इस रासौ ग्रंथ से अजमेर के चैहान शासक बीसलदेव उर्फ विग्रहराज चतुर्थ एवं उनकी रानी (मालवा के राजा भोज की पुत्र) राजमति की प्रेमगाथा का वर्णन मिलता है।

राव जैतसी रो छंद: बीठू सूजा द्वारा रचित डिंगल भाषा के इस ग्रंथ से बीकानेर पर बाबर के पुत्र कामरान द्वारा किए गए आक्रमण एवं बीकानेर के शासक राव जैतसी (जेत्रसिंह) द्वारा उसे हराये जाने का महत्वपूर्ण वर्णन मिलता हैं।

वंश भास्कर: बूंदी के हाड़ा शासक महाराव रामसिंह के दरबारी चारण कवि सूर्यमल्ल मिश्रण द्वारा 19 वीं शताब्दी में रचित इस पिंगल काव्य ग्रंथ में बूंदी राज्य का विस्तृत, ऐतिहासिक एवं उतरी भारत का इतिहास तथा राजस्थान में मराठा विरोधी भावना का उल्लेख किया गया है। वंश भास्करको पूर्ण करने का कार्य इनके दतक पुत्र मुरारीदान ने किया था।

वीरसतसई: बूंदी के शासक महाराव रामसिंह हाड़ा के प्रसिद्ध दरबारी कवि सूर्यमल मिश्रण द्वारा रचित इस ग्रंथ से बूंदी के हाड़ा शासकों के इतिहास, उनकी उपलब्धियों व अंग्रेज विरेाधी भावना की जानकारी मिलती है। सूर्यमल मिश्रण की अन्य रचनाएं – बलवंत विलास, छंद मयूख, उम्मेदसिंह चरित्र व बुद्धसिंह चरित्र है।

चेतावनी रा चूंगट्या: राजस्थान के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर केसरीसिंह बारहट ने इन दोहों के माध्यम से मेवाड़ा महाराणा फतेहसिंह को वर्ष 1903 के लाॅर्ड कर्जन के दिल्ली दरबार में जाने से रोका था।

History of Rajasthan Art, Culture, Literature, Tradition & Heritage Indian Culture



Modified: March 19, 2016 at 12:11 pm

16 thoughts on “History of Rajasthan Art, Culture, Literature, Tradition & Heritage Indian Culture

  1. sujata

    village .marar
    post office pirsaluhi
    Tehsil .Rakkar
    district. kangra
    pin code 177034
    (H.P)

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